BA Semester-1 History - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 इतिहास

बीए सेमेस्टर-1 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :325
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2628
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-1 इतिहास के नवीन पाठ्यक्रमानुसार प्रश्नोत्तर

प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।

अथवा
मौर्य शासन पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
अथवा
चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन-परिचय देते हुए उसकी सफलताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
राजा चन्द्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
मौर्य कौन थे? चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन तथा उपलब्धियों का वर्णन कीजिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्कर्ष समझाइये।
2. चन्द्रगुप्त की शिक्षा-दीक्षा का वर्णन कीजिए।
3. चन्द्रगुप्त के सेल्यूकस के साथ हुए युद्ध का वर्णन कीजिए व सन्धि की शर्तें भी बताइए।
4. चन्द्रगुप्त मौर्य की पश्चिमी भारत की विजय का वर्णन कीजिए।
5. चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन प्रबन्ध कैसा था?
6. चन्द्रगुप्त मौर्य की गुप्तचर व्यवस्था किस प्रकार की थी?
7. चन्द्रगुप्त मौर्य की न्याय व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
8. चन्द्रगुप्त मौर्य के आय व व्ययो पर टिप्पणी कीजिए।
9. चन्द्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन कीजिए।
10. चन्द्रगुप्त महानतम् सम्राट था। समझाइए।
11. सेल्युकस कौन था?
12. चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियों का विवेचन कीजिए।

उत्तर-

चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्कर्ष (345 ई. पू. के लगभग)

चतुर्थ शती ई. पूर्व के अन्तिम चरण के आरम्भ में उत्तर भारत की राजनैतिक दशा अत्यन्त डाँवाडोल थी। मगध में धननन्द के बलपूर्वक कर ग्रहण, उसके असीम लोभी, अत्याचारी और नीच कुलीय होने के कारण नन्द वंश पतनोन्मुख था और पंजाब की जनता और उसके राष्ट्र सिकन्दर की निर्दयता से अब भी कराह रहे थे। परिणामतः साहसी राजनीतिक पण्डितो और महत्वाकांक्षियों के लिए असीम क्षेत्र मिल गया। चन्द्रगुप्त जनता के असन्तोष को अपना अस्त्र बनाकर नियति के मार्ग पर बढ़ चला। जान पड़ता है कि उसकी सेवा में पहले की सेना में एक सेनापति था परन्तु अपने स्वामी के दुर्व्यवहार के कारण असन्तुष्ट होकर उसने विद्रोह का झण्डा उठाया। इस कार्य में प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ विष्णुगुप्त अथवा चाणक्य से भी, जो साधारण अवमानना से नन्दराज से कुपित हो गया था उसे सक्रिय सहयोग मिला परन्तु उनका षड्यन्त्र विफल हुआ और उनको प्राणों की रक्षा के लिए भागना पड़ा। महावश टीका में बताया गया है कि चन्द्रगुप्त अज्ञातवास में एक वृद्धा की झोपड़ी में छिपा हुआ था तब उसने उसे रोटी खाते हुए बच्चे को उसका हाथ जल जाने के कारण झिड़कते सुना, वृद्धा ने कहा कि गरम फुलके खाते समय किनारे से तोड़ना चाहिए बीच में हाथ लगाने से हाथ जल ही जायेगा। चन्द्रगुप्त ने इससे यह सबक सीखा कि उसको राजधानी को सीधा निशाना नहीं बनाना चाहिए बल्कि राज्य की सीमा को पहले अपने कब्जे में लाने की कोशिश करनी चाहिए। इस पर चन्द्रगुप्त ने तत्कालिक केन्द्र पश्चिमोत्तर सीमा को बनाया।

सिकन्दर से भेंट - इतिहास के साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि सिकन्दर उस समय पंजाब में ही था जब चन्द्रगुप्त ने उसे मगध के विरुद्ध भडकाने के विचार से उससे मिला, परन्तु सिकन्दर के दर्पयुक्त वाक्यों ने चन्द्रगुप्त को पीछे हटा दिया इस कारण चन्द्रगुप्त वहाँ से वापस हो गया था। सिकन्दर के वापस हो जाने पर चन्द्रगुप्त ने अपना गुप्तवास समाप्त किया।

चन्द्रगुप्त की शिक्षा-दीक्षा - आचार्य चाणक्य ने एक बार कुछ बालकों के समूह में एक बालक को खेलता देखा। बालक बड़ा ही होनहार और योग्य था उसे तक्षशिला लाकर शिक्षित किया। चन्द्रगुप्त ने कम से कम 8 वर्ष तक सैन्य प्रशिक्षण तक्षशिला में प्राप्त किया था। आचार्य चाणक्य वाद-विवाद मे सम्मिलित होने पाटलिपुत्र जाया करता था। इसी बीच एक श्राद्ध के अवसर पर चाणक्य को नन्द राजा धननन्द के प्रासाद में भोजन ग्रहण करने के लिए जाने का मौका मिला परन्तु राजा ने चाणक्य का अपमान कर उसे भोज स्वीकार के लिए इन्कार कर दिया तथा उसका अपमान करते हुए कहा कि तू कौन है? काला चाण्डाल की आकृति मे यहाँ कैसे आ गया? इस तिरस्कार को चाणक्य कैसे सहन कर सकता था, इस पर चाणक्य ने अपनी शिखा खोलकर शपथ ली - "जब तक मैं नन्दवंश को समूल नष्ट नहीं कर लूंगा तब तक मैं अपनी इस शिखा को नहीं बाधूंगा। इस बात की जानकारी बौद्ध ग्रन्थ महावंश से होती है।

नन्दों पर असफल आक्रमण - सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने मिलकर नन्दों पर आक्रमण किया. परन्तु उन्हें बुरी तरह परास्त होना पड़ा और प्राण बचाकर भागना पड़ा। इसी प्रकार के जैन ग्रन्थ परिशिष्य प्रमाण से ज्ञात होता है कि एक बच्चा जो अत्यधिक लालची था और जो खीर को थाली में किनारे से न खाकर बीच से ही खाने लगा। इस कारण उसका हाथ जल गया। उसी प्रकार चन्द्रगुप्त ने भी सीमान्त प्रान्तों को छोड़कर केन्द्र पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप उसे पराजित होना पड़ा था। अतः चन्द्रगुप्त ने अपनी नीति में परिवर्तन किया था।

सीमान्त प्रान्तों में विद्रोह - सिकन्दर के वापस जाते ही सीमान्त प्रान्तों में क्षत्रपों की हत्या कर दी गयी। ग्रीक लेखक जस्टिन के अनुसार सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् भारत ने पराधीनता के जुए को अपने कन्धे से उतार फेका और उस (सिकन्दर) के द्वारा नियुक्त शासको की भी हत्या कर दी गयी। इस स्वाधीनता की स्थापना सेन्ड्राकोट्स अर्थात् चन्द्रगुप्त के द्वारा की गयी थी।

विशाल सैन्य संगठन - भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने के लिए यह आवश्यक था कि एक विशाल सेना का संगठन किया जाय। अतः चन्द्रगुप्त ने एक विशाल सेना को संगठित किया। विशाखदत्त, मुद्राराक्षस नाम ग्रन्थों में उसकी सेना की पुष्टि होती है। उसकी सेना में शक, पवन, किरात, कम्बोज, पारसीक, वाहलीक आदि सेनाएं थी जिन्हें आचार्य चाणक्य ने अपने वश में कर रखा था।

चन्द्रगुप्त की विजयें - दुर्भाग्यवश चन्द्रगुप्त के युद्धों का पूर्ण वृत्तान्त नहीं प्राप्त होता है। ग्रीक लेखक प्लूटार्क तथा जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त की सेना सम्पूर्ण भूमि पर अपना अधिकार करना चाहती थी। चन्द्रगुप्त ने मगध और पंजाब के अतिरिक्त अपने राज्य की सीमा भारत के प्रदेशों पर भी बढ़ा ली थी। सौराष्ट्र का उसके राज्य के अन्तर्गत होना रुद्रदामन के जूनागढ़ वाले शिलालेख से प्रमाणित होता है। इस लेख में चन्द्रगुप्त की सिंचाई योजना और उस प्रान्त के लिए पुष्पगुप्त वैश्य की 'राष्ट्रीय' के पद नियुक्ति का उल्लेख है। तमिल लेखक यामुलनार और परणार टिन्नेवल्ली जिले के पोदियिल पर्वत तक सुदूर दक्षिण पर मौर्य आक्रमण का उल्लेख करते हैं। इसी प्रकार जैन अनुश्रुति और कुछ उत्तरकालीन अभिलेख भी उत्तर मैसूर के साथ चन्द्रगुप्त का सम्बन्ध प्रमाणित करते हैं। इससे चन्द्रगुप्त द्वारा भारत के एक बड़े भाग की विजय सिद्ध होती है।

सीमान्त प्रान्तों की विजय - चन्द्रगुप्त ने सर्वप्रथम सीमान्त प्रान्तों पर विजय प्राप्त की. इसके पश्चात् उसने मगध साम्राज्य पर आक्रमण किया। सीमा प्रान्तों के क्षेत्र में विजय का श्रेय चन्द्रगुप्त के साथ चाणक्य को भी है। दूसरी बार चन्द्रगुप्त मौर्य ने विशाल सेना के द्वारा मगध पर आक्रमण किया। मगध सम्राट नन्द तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच युद्ध का विस्तृत विवरण नहीं मिलता है फिर भी युद्ध की भयंकरता का आभास बौद्ध साहित्य और ग्रीक लेखकों के विवरणों से ज्ञात होता है कि नन्द के पास विशाल सेना थी जिसमें 10,000 पैदल, 20,000 घुडसवार, 2,000 रथ और 3,000 हाथी थे। कर्टियस के अनुसार नन्द की सेना में केवल 6 लाख पैदल सेना थी। बौद्ध ग्रन्थ मिलिन्दपन्हो के अनुसार इस युद्ध में 100 कोटि पैदल, 10 हजार हाथी, 1 लाख घुड़सवार और 5 हजार रथ काम आये थे। यद्यपि उपर्युक्त विवरण में अतिशयोक्ति है फिर भी युद्ध की भयकरता का आभास होता है। इस युद्ध में अपार धन-जन की हानि हुई। परिशिष्ट पर्व में लिखा है कि नन्द की सेना की युद्ध करते-करते जब धन, शक्ति और यहाँ तक बुद्धि भी नष्ट हो गयी तब उसने चाणक्य और चन्द्रगुप्त के आगे आत्म-समर्पण कर दिया तथा चाणक्य ने नन्द को अपनी पत्नी और पुत्री सहित एक रथ पर जितनी सम्पत्ति आ सकती थी उसे लेकर राज्य के बाहर चले जाने को कहा। परन्तु जैन ग्रन्थों के अनुसार नन्द की मृत्यु युद्ध में लड़ते हुए हुई थी।

सिंहासनारोहण - नन्द वंश को समाप्त कर चन्द्रगुप्त आचार्य विष्णुगुप्त की सहायता से मगध के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। सिंहासनारोहण की विधि में परस्पर मतभेद होने के पश्चात् भी 323 ई. या 322 ई. पूर्व के मध्य में सिहासनारोहण मान्य है। चन्द्रगुप्त भारतीय इतिहास में पहला सम्राट था जिसने अपने गुरु एव मन्त्री विष्णुगुप्त की सहायता से भारत को यूनानी शक्तियों से मुक्त कराया. इसके पश्चात् मगध के नन्दवशी राजा धनन्द को सिंहासन स उतार कर मगध राज्य छीन लिया तथा मौरिया के यूनानी शासक सेल्यूकस को पराजित कर उसे सन्धि के लिए मजबूर किया था।

सेल्यूकस - सिकन्दर का सेनापति था। जिस समय चन्द्रगुप्त भारत की विजय करने में लगा हुआ था. उसी समय सेल्यूकस भारत पर आक्रमण करने की तैयारियाँ कर रहा था। उसने सिकन्दर का अनुकरण करना चाहा और सिन्धु के इस पार के प्रान्तों पर यूनानी सत्ता कायम करने का प्रयत्न किया, किन्तु इस समय तक भारत की राजनीतिक परिस्थिति बदल चुकी थी। 305 ई. पू. के लगभग सेल्यूकस सिन्धु के तट पर पहुँचा। उसने आतंकित होकर चन्द्रगुप्त से सन्धि कर ली। सन्धि की शर्तों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उसकी अवश्य करारी हार हुई होगी। उसने चन्द्रगुप्त को एरिया (हिरात), अराकोजिया (कान्धार), परोपनिषदे (काबुल की घाटी) तथा गडरोजिया (बलूचिस्तान) के चार प्रान्त दे दिए और अपनी पुत्री का विवाह भी उसके साथ कर दिया। उपहार में चन्द्रगुप्त ने 500 हाथी सेल्यूकस को दिए। इसके बाद सेल्यूकस ने मौर्य दरबार से सदैव मित्रतापूर्व सम्बन्ध बनाए रखे और अपना मैगस्थनीज नामक एक राजदूत भेजा, जो पाटलिपुत्र में दीर्घकाल तक रहा।

मेगस्थनीज और कौटिल्य -  मेगस्थनीज और कौटिल्य महत्वपूर्ण तात्कालिक लेखक तथा विचारक थे जिसके ग्रन्थ चन्द्रगुप्त मौर्य की प्रजा, शासन प्रबन्ध एवं व्यवस्था तथा भारतीय सस्थाओं पर गहराई से प्रकाश डालते हैं। मेगस्थनीज की इण्डिका अब प्राप्य ग्रन्थ नहीं है परन्तु यह पाश्चात्य लेखको के लम्बे उद्धरणों में अब भी प्रायः सुरक्षित है। चाणक्य के चन्द्रगुप्त का महामन्त्री होने के कारण इसके साहित्य से मौर्यकालीन इतिहास की पूर्ण रूप से जानकारी मिलती है।

पश्चिम भारत की विजय - चन्द्रगुप्त ने पश्चिम में सौराष्ट्र तक विजय प्राप्त कर ली थी जिसका उल्लेख रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है। इस अभिलेख के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सौराष्ट्र में विजय प्राप्त कर वहाँ अपना गवर्नर पुष्यगुप्त को नियुक्त किया था। सौराष्ट्र प्रान्त के दक्षिण में सोपारा नामक स्थान से चन्द्रगुप्त के पौत्र अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है, परन्तु अशोक अपने अभिलेखों में इस प्रदेश को जीतने का दावा नहीं करता। अतः इससे निष्कर्ष निकलता है कि वह प्रदेश भी चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा विजित किया गया था। डा. एच. सी. राय चौधरी ने चन्द्रगुप्त मौर्य की पश्चिम विजय का समर्थन किया है।

दक्षिण भारत की विजय - चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा दक्षिण भारत की विजय के बारे में विद्वानों में परस्पर मतभेद है। कुछ विद्वानों के अनुसार दक्षिण की विजय चन्द्रगुप्त ने तथा उसके पुत्र बिन्दुसार ने मिलकर की थी, परन्तु हेमन्त राय चौधरी का दृष्टिकोण विपरीत है, उनके अनुसार दक्षिण की विजय नन्द राजाओं ने की थी। वे लिखते हैं, "गोदावरी के तट पर नौनन्द देहरा नामक नगर से यह सिद्ध होता है कि नन्द का राज्य दक्षिण के अत्यधिक भू-भाग को अपने में विलीन कर चुका था। इसके अलावा तमिल साहित्य में भी नन्द राजाओं की अतुल सम्पत्ति का उल्लेख मिलता है। मैसूर शिलालेख से ज्ञात होता है कि नन्द साम्राज्य मैसूर राज्य के कुन्तल प्रान्त तक फैला था। जैन ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का दक्षिण से अवश्य सम्बन्ध था उसने दक्षिण विजय अवश्य की थी। सम्राट अशोक के शिलालेख भी चन्द्रगुप्त

मौर्य की दक्षिण विजय को प्रमाणित करता है। प्लूटार्क का यह कथन सत्य साबित होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने 6 लाख सेना के साथ सम्पूर्ण भारत को आक्रान्त किया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन प्रबन्ध

चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विस्तृत राज्य की स्थापना की थी। उसने उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण मे मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से लेकर उत्तर-पश्चिम में अरब सागर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी।

सैन्य संगठन - चन्द्रगुप्त ने अपने पूर्ववर्ती सम्राट से एक विशाल सेना विरासत में पायी थी। इसके अलावा इसने भी सेना में और वृद्धि की थी। अब इसकी सेना में 600,000 पदाति, 30,000 घुडसवार तथा 9,000 हाथी और प्राय: 8,000 रथ थे। यह विशाल सेना एक युद्ध परिषद द्वारा शासित होती थी। इस परिषद के 30 सदस्य पाँच-पाँच की छः समितियों में विभक्त थे। उनके विभिन्न विभाग निम्नलिखित थे -

समिति संख्या 1.
समिति संख्या 2.
समिति संख्या 3.
समिति संख्या 4.
समिति संख्या 5.
समिति संख्या 6.
नौ सेना
सेना, यातायात और आवश्यक युद्ध मे सम्बन्धित वस्तुओं का विभाग
पदाति सेना
अश्व सेना
रथ सेना
गज सेना

इनमें से अन्तिम चार विभाग भारतीय सेना के चार परम्परागत पदाति, अश्व, रथ और हाथी के अनुकूल हैं। कौटिल्य के अनुसार ये अपने-अपने अध्यक्षो के अधीन थे।

केन्द्रीय शासन

1. सम्राट-  शासन प्रणाली राजतन्त्रात्मक थी। राजा समस्त शक्तियों का केन्द्र था, यद्यपि उसकी शक्तियाँ एवं अधिकार असीमित थे किन्तु फिर भी वह पूर्णरूपेण निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी नही बन सकता था। मन्त्रिपरिषद का उस पर अंकुश रहता था। वह प्रधान सेनापति, प्रधान न्यायाधीश तथा प्रधान दण्डाधिकरी होता था। राजा विदेशों में राजदूतों की स्वयं नियुक्ति करता था। अर्थशास्त्र के अनुसार राजा के दरवाजे हमेशा प्रजा के लिए खुले रहते थे। राजा देश की सेना का प्रधान सेनापति अर्थात् सर्वोच्च अधिकारी होता था। विदेशी राजाओं के साथ सन्धि करने तथा उसे तोड़ने का अधिकार केवल राजा को था। कौटिल्य के अनुसार राजा प्रजा का ऋणी होता था जो अपने अच्छे शासन के द्वारा उस ऋण को उतारता था। राजा को रात्रि में मात्र 3 घण्टे सोना चाहिए। विलासिता तथा आराम राजा के लिए वर्जित था, तभी एक कुशल शासन व्यवस्था दे सकेगा। राजा का व्यवहार प्रजा के साथ पिता और पुत्र की भाँति होना चाहिए। प्रजा की प्रसन्नता पर राजा की प्रसन्नता पर निर्भर होनी चाहिए। कौटिल्य ने प्रजा का कर्तव्य राजा के प्रति क्या होना चाहिए उसे इस प्रकार बताया है प्रजा को हमेशा राजा के गुण और दोषों पर ध्यान रखना चाहिए यदि राजा अन्याय करता है तो राज्य के ब्राह्मणों, साधुओं और जनता को उसके विरुद्ध होना चाहिए। जनता का क्रोध सर्वोपरि है। अत: जनता का राजा पर पूर्ण अधिकार होता है।

2. मन्त्रिपरिषद - राजा की सहायता अथवा सलाह देने के लिए एक कुशल मन्त्रिपरिषद की व्यवस्था की गयी थी। इसमें 12 से लेकर 20 तक मन्त्री रहते थे। मन्त्रिपरिषद के प्रत्येक सदस्य को 12,000 पण वार्षिक वेतन दिया जाता था। मन्त्रिपरिषद के सभी निर्णय बहुमत द्वारा लिये जाते थे। बैठकें गुप्त रूप से होती थी तथा राजा मन्त्रिपरिषद के निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं था।

3. अमात्य मण्डल - केन्द्रीय शासन को सुविधा की दृष्टि से कई भागो में विभक्त कर दिया गया था जिनको 'तीर्थ' कहा जाता था। प्रत्येक विभाग के अध्ययन को अमात्य कहा जाता था। कुल मिलाकर आमात्यों की संख्या 18 थी। ये आमात्य निम्नलिखित थे -

1. पुरोहित. 2. मंत्री. 3. सेनाध्यक्षन, 4. दण्डपाल, 5. दौवारिक अर्थात् द्वारपाल 6. युवराज, 7. दुर्गपाल, 8. अतपाल अर्थात् सीमा रक्षाधिकारी, 9. अन्तपुर रक्षाधिकारी, 10. प्रशात्र अर्थात् कारागार अधिकारी, 11. सन्निधानी अर्थात् राजकोष अखागार तथा कोष्ठागार का अधिकारी, 12. नायक तथा नगर का रक्षक 13. समाहर्ता अर्थात राज्य की सम्पत्ति एवं आय-व्यय का अधिकारी, 14. प्रदेष्टा, 15.  व्यावहारिक अर्थात् प्रधान न्यायाधीश, 16. पौर अर्थात् कौतवाल, 17. मल्मी मण्डलाध्यक्ष और, 18. कार्मान्तरिक अर्थात् स्थान एवं कारखानों का अधिकारी।

प्रान्तीय शासन -  सुविस्तृत साम्राज्य होने के कारण शासन की सुविधा के लिए राज्य अनेक प्रान्तों में विभक्त था। समीप के प्रान्तों का शासन तो राजा स्वयं करता था। मुख्य प्रान्तों का प्रबन्ध राजकुलीय 'कुमार' करते थे। मुख्य रूप से सम्पूर्ण राज्य निम्नलिखित चार प्रान्तों में विभक्त था -

1. पूर्वी प्रान्त - इसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा सम्मिलित थे। 2. उत्तर पश्चिमी प्रान्त - वर्तमान पंजाब, सिन्ध, कश्मीर, ब्लूचिस्तान तथा अफगानिस्तान थे। 3. पश्चिमी प्रान्त मालवा, गुजरात, काठियावाढ तथा राजस्थान प्रदेश सम्मलित थे।

4. दक्षिणी प्रान्त - विन्ध्याचल पर्वत से लेकर मैसूर तक के प्रदेश सम्मिलित थे।

तक्षशिला, तोशलि, सुवर्णगिरि और उज्जैन इसी प्रकार के प्रान्तीय शासन केन्द्र थे। सामंत नृपति सम्राट के आधिपत्य में रहते और आवश्यकता पडने पर सेना से उसकी सहायता करते थे। शासन का कार्य क्रमागत अध्यक्षों का वर्ग करता था जिसकी कार्यप्रणाली पर चर और अन्य कर्मचारी कड़ी दृष्टि रखते थे। इस प्रकार के चर कार्य तथा रोध प्रतिरोध सुदूर प्रान्तों की प्रजा को कर्मचारियों की धांधली से रक्षा करने में सहायक होते थे। राजा को बराबर हर बात की खबर मिलती रहती थी।

गुप्तचर विभाग

गुप्तचर प्रणाली अत्यन्त ही सुव्यवस्थित एवं सुसंगठित थी। कोटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार गुप्तचरों के निम्नलिखित दो वर्ग थे

1. संस्थान - इस वर्ग के गुप्तचरों को कापटीक, गृहपतिक तापस वैदेहक आदि नामों से पुकारा जाता था। ये एक ही स्थान पर रहते थे।

2. संचारण- इस वर्ग के गुप्तचर ज्योतिष, साधु आदि के वेष में घूम-घूमकर गोपनीय सूचनाओं को सम्राट तक पहुँचाते थे।

गणिकाओं द्वारा भी गुप्तचरों के कार्यों का उल्लेख मिलता है। राजा महल से लेकर महामात्यों पुरोहितों, सेनापतियों तथा राजकुमारों के कार्यों पर गुप्तचर दृष्टि रखते थे। छाया की भाँति सर्वत्र गुप्तचर पदाधिकारियों पर नजर रखते थे। गुप्तचरों को गूढ पुरुष भी कहा जाता था।

नगर शासन - मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र की शासन व्यवस्था पर्याप्त विस्तार से दी है। वर्णन तो उसका केवल पाटलिपुत्र के सम्बन्ध में है परन्तु इससे यह अनुमान लगाना कि अन्य बड़े नगर भी इसी प्रणली से शासित होते होंगे कुछ अनुचित न होगा। ग्रीक राजदूत लिखता है कि नगर का शासन पाँच-पाँच सदस्यों की छ समितियाँ करती थीं। वी. ए. स्मिथ की राय में से समितियों साधारण गैर-सरकारी, धनिक पंचायतों का सरकारी (वैधानिक) विकास थी। इन समितियों का वर्णन निम्नलिखित है-

पहली समिति - यह समिति औद्योगिक शिल्पों का निरीक्षण करती थी। वस्तुओं के बनाने में उचित सामग्री के प्रयोग के अनुशासन करने तथा उचित पारिश्रमिक स्थिर करने के अतिरिक्त शिल्पियों की रक्षा इसका विशेष कर्तव्य था। शिल्पी के अंगो को क्षति पहुँचाने वाले को प्राणदण्ड मिलता था।

दूसरी समिति - यह समिति विदेशियों की गतिविधियों देखती थी और उनकी आवश्यकताओं का प्रबन्ध करती थी। उनको ठहराने के लिए आवास तथा बीमारी में आवश्यकतानुसार औषधि भी दी जाती थी। उनकी मृत्यु होने पर उनके दाहकर्मादि का समिति प्रबन्ध करती और उनकी सम्पत्ति उनके वारिसों को दे देती थी। इससे सिद्ध होता है कि राजधानी में विदेशियों की संख्या काफी थी।

तीसरी समिति - यह समिति जन्म-मरण की रजिस्ट्री करती थी। इससे करादि के लिए जनसंख्या के सम्बन्ध में सरकार को ज्ञात होता था।

चौथी समिति - यह समिति व्यापार का प्रबन्ध करती थी। यह समिति विक्रय की वस्तुओं का अनुशासन करती थी और दूषित वाट वटखरों पर कर लगाती थी. जो एक से अधिक वस्तुओं का व्यापार करता था उसे उसी औसत से अधिकतर कर देना पड़ता था।

पाँचवीं समिति - यह समिति कारखाने के मालिकों पर अनुशासन रखती और यह देखती थी कि पुरानी और नई वस्तुए एक साथ मिलाकर न बेच दी जाये। ऐसा करने वाले को शुल्क दण्ड देना पड़ता था।

छठी समिति - यह समिति बिकी हुई वस्तुओ पर कर वसूल करती थी। इस कर से बचने का प्रयत्न अभियुक्त को प्राणदण्ड का भागी बनाता था, विशेषकर जब यह कर दृव्य सम्बन्धी होता था। परन्तु अनजाने में किया हुआ अपराध निश्चित दण्डों से बढ़ता जाता था।

इस प्रकार नगर शासन इसके अतिरिक्त मन्दिरों, बंदरगाहों और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं का भी प्रबन्ध करता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इनमें से किसी शासन समिति का उल्लेख नहीं है। उसके विधान में नगर का शासक नागरिक अथवा नगराध्यक्ष है, जिसके नीचे स्थानिक और गोप नामक पदाधिकारी थे। स्थानिक नगर के चौथाई और गोप केवल कुछ किलो के ऊपर नियुक्त था।

पाटलिपुत्र - यहाँ साम्राज्य की राजधानी के सम्बन्ध में भी कुछ विवरण देना आवश्यक हो जाता है। पाटलिपुत्र के मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक पालिम्बोभा में बताया है कि पूर्व के देशों में अधिष्ठित 'भारत का सबसे बड़ा नगर था। यह 30 मील (80 स्टैडिया) लम्बा और प्रायः पौने दो मील (15 स्टैडिया) चौड़ा था। यह शोण तथा गंगा से निर्मित सगम पर स्थित था। इसकी रक्षा के लिए 600 फीट से अधिक चौडी तीस हाथ गहरी खायी इसके चारों ओर दौड़ती थी। इसके अतिरिक्त एक ऊंची प्राचीर भी थी जिसमें 570 बुर्जियाँ और 64 द्वार थे। साम्राज्य के अन्य बड़े नगरों में भी निस्सन्देह इसी प्रकार का रक्षा प्रबन्ध था।

ग्राम शासन- ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी। ग्राम का प्रबन्ध ग्राम का मुखिया करता था जिसे ग्रामिक कहा जाता था। यह गाँव के लोगों द्वारा चुना जाता था परन्तु राज्य की ओर से कोई वेतन इसे नहीं प्राप्त होता था। मुखिया के समान उच्च पद गोप का होता था जो 10 ग्रामों की देखभाल करता था। स्थानिकों का कार्यक्षेत्र जनपद था जिसे जिले के चौथे भाग पर नियन्त्रण रखना होता था।

न्याय व्यवस्था (Administration of Justice) - न्याय विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी राजा होता था। न्यायालय निम्नलिखित दो प्रकार के होते थे -

1. धर्मस्थलीय न्यायालय - इसमें दीवानी सम्बन्धी मामलो का निर्णय होता था।

2. कण्टकशोधन - इसमें फौजदारी सम्बन्धी मामलों का निर्णय होता था। इसके अलावा जनपद सन्धि न्यायालय में दो गाँवों के आपसी झगड़ों का फैसला होता था। द्रोणमुख चार सौ ग्रामों के ऊपर का न्यायालय होता था। राजुक जनपद के न्यायालय का न्यायाधीश होता था। व्यावहारिक महामात्र नगर का न्यायाधीश होता था।

दण्डनीति - मेगस्थनीज और कौटिल्य दोनो ने दण्डनीति की कठोरता का उल्लेख किया है। साधारणतः अभियुक्त शुल्क (जुर्माने) से दण्डित होते थे। परन्तु इसके अतिरिक्त भीषण दण्डों की भी कमी न थी। शिल्पी की अंग हानि करने अथवा विक्रय सम्बन्धी राज-कर को जानबूझकर न देने का दण्ड प्राणदण्ड था। इसी प्रकार विश्वासघात और व्यभिचार का दण्ड अंगच्छेद था। राजकर्मचारी की हल्की चोरी के लिए भी कौटिल्य ने प्राणदण्ड का विधान दिया है। अभियुक्तों और अपराधियों से अपराध स्वीकार कराने के लिए विविध यातनाओं का प्रयोग होता था। इसमे सन्देह नहीं कि दण्डनीति कठोर थी. परन्तु इसकी कठोरता ही अपराधों के अवरोध में भी पर्याप्त सफल हुई होगी।

सिंचाई व्यवस्था - चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिंचाई के सम्बन्ध में विशेष प्रयास किया था। मेगस्थनीज ऐसे अधिकारियों का उल्लेख करता है कि जिनका कर्तव्य भूमि को नापना और उन छोटी नालियों का निरीक्षण करना था जिनमे होकर पानी सिंचाई की नहरों मे जाता था जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अपना सही भाग मिल सके। अपनी प्रजा के कल्याण के लिए चन्द्रगुप्त ने सुदूर सौराष्ट्र के प्रान्तीय शासक के द्वारा एक पर्वतीय नदी के जल को रोककर सुदर्शन नाम की झील बनवाई जो सिंचाई के लिए उपयोगी सिद्ध हुई।

आय-व्यय का साधन - आय का प्रमुख साधन भूमि-कर था। इस राज कर को भाग कहते थे। कर भूमि की उपज का छठा हिस्सा था यद्यपि उसका अनुपात स्थान और परिस्थितियों के अनुकूल घटता-बढ़ता रहता था। भूमि के अतिरिक्त आय के साधन अग्रलिखित थे - आकर, वन, सीमाओं पर चुंगी. घाटों पर कर, पेशेवर आचार्यों और विशेषज्ञों से शुल्क (फीस), विक्रय की वस्तुओं आदि पर कर और टैक्स, दण्ड के शुल्क (जुर्माने) और राज्य की अनिवार्य आवश्यकता के लिए विशेष कर थे। आय को एकत्र करने वाला अधिकारी समाहर्ता कहलाता था। इस प्रकार सचित की हुई आय का व्यय अनेक प्रकार के सार्वजनिक आवाओं और राजा की व्यक्तिगत जरूरतो पर होता था। ये निम्नलिखित थे-

1. उसका दरबार, 2 सेना, 3. राज्य की रक्षता, 4. राज्य कर्मचारियों के वेतन 5 शिल्पियों और दूसरे कर्मचारियों को पुरस्कार 6 दान, 7. धार्मिक संस्थाओं आदि सार्वजनिक उपयोगिता के साधन, सड़कें, सिचाई इत्यादि।

राजकीय व्यय - चाणक्य के अर्थशास्त्र से राजकीय व्यय की जानकारी मिलती है जिसमे राजकर्मचारियों का वेतन, सैनिक व्यय, शिक्षा, दान सहायता, सार्वजनिक आमोद-प्रमोद सार्वजनिक हित कार्य आदि प्रमुख थे।

मेगस्थनीज और वर्ग - मेगस्थनीज ने अपने वृत्तान्त में भारतीय समाज को सात वर्गों में विभक्त किया था। इनमें से-

पहला वर्ग - दार्शनिकों का था, यद्यपि इसकी संख्या अधिक नहीं थी परन्तु इसका सम्मान अधिक था। स्पष्टत इस वर्ग के अन्तर्गत ब्राह्मण और साधु-सन्यासी थे।

दूसरा वर्ग - कृषकों तथा पशुपालकों का था, जिनकी संख्या सबसे अधिक थी।

तीसरा वर्ग - शिकारियों तथा सेवको का था।

चौथा वर्ग - व्यापारी, शिल्पी माझी आदि आते थे।

पंचम वर्ग- क्षत्रिय योद्धाओं का था।

षष्ठ वर्ग  तथा सप्तम वर्ग - इसमें मेगस्थनीज ने क्रमश: चर और मन्त्री गिने हैं।

ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज का यह वर्णन प्रमाणतः अशुद्ध तथा दोषपूर्ण है। मेगस्थनीज स्पष्टत भारतीय सामाजिक व्यवस्था को न समझ सकने के कारण यहाँ भूल बैठा था।

राजप्रसाद चन्द्रगुप्त का जीवन बड़े वैभव और तड़क-भड़क का था। उसने अपने निवास के लिये विशाल राजप्रासाद का निर्माण कराया था। यह राजप्रासाद सुविस्तृत पार्क के मध्य खड़ा था। उसमें सुनहरे खम्भे थे और कृत्रिम मत्स्य तालाब और हरियाली से ढक मार्ग थे। यह भवन अत्यन्त आकर्षक था और इसकी सुन्दरता सूसा और एकवताना के महलों से भी बढ़कर थी। काष्ठ निर्मित होने के कारण यह काल के प्रभाव और ऋतुओं के आक्रोश को न सह सका। इसके भग्नावशेष आधुनिक पटना के समीप कुसहार नामक गाँव में डा. स्थूनर ने खोद निकाले थे। इनका एक भाग सम्भवत चन्द्रगुप्त के राजभवन के सौ खम्भों वाले हाल का था।

चन्द्रगुप्त मौर्य का अन्त -  बौद्ध साहित्य के अनुसार मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 24 वर्ष तक सफलतापूर्वक शासन किया। जैन साहित्य के अनुसार चन्द्रगुप्त ने अपने अन्तिम दिनों में राज-काज को अपने पुत्र को सौंपकर जैन धर्म को स्वीकार किया और जैन भिक्षु भद्रबाहु के साथ मैसूर चला गया। वही संन्यासियों का जीवन व्यतीत करते हुए 298 ई. पूर्व के लगभग उसकी मृत्यु हो गयी।

चन्द्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन
(Evaluation of Chandra Gupta Mauraya)

चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक साधारण स्थिति से ऊपर उठकर सम्राट की पदवी धारण की थी। यह उसकी प्रतिभा-सम्पन्नता की द्योतक है जिसने सम्पूर्ण भारत में बिखरे हुए छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर एकता के सूत्र में बांधा। यह उसकी वीरता एवं शौर्य का द्योतक है। अतः निम्नलिखित आधार पर उसके चरित्र का मूल्याकन कर सकते हैं

1. कुशल सम्राट - चन्द्रगुप्त ने जिन परिस्थितियों में मगध का सिंहासन प्राप्त किया वह अपने आप में अद्भुत घटना है। उसने राज्यारोहण के पश्चात् एक कुशल प्रशासक की भाँति प्रजा की स्थिति को समझा और उनकी समस्याओं का निराकरण किया। सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बेचना सबसे बड़ी कुशलता है तथा जनता की इच्छानुकूल शासन प्रबन्ध स्थापित करना उसकी प्रशासनिक क्षमता की निशानी है।

2. योग्य राजनीतिज्ञ - चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य का शिष्य होने के कारण सद्यः उत्पन्न बुद्धि वाला व्यक्ति था। उसने जब जैसी स्थिति समझी उसी के अनुसार अपनी नीतियों को परिवर्तित किया. जैसे राज्य में गुप्तचरों की नियुक्ति करना एवं सेल्यूकस से सन्धि स्थापित करना उसके कुशल राजनीतिज्ञ होने का परिचायक है।

3. प्रजापालक -चन्द्रगुप्त मौर्य व्यक्तिगत रूप से प्रजा के कल्याण में रुचि रखता था। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में प्रजाहित को सर्वोपरि माना है। अतः चन्द्रगुप्त मौर्य के जनहित  सम्बन्धी कार्य विभिन्न क्षेत्रों में किये गये।

4. धर्मपरायण शासक - चन्द्रगुप्त प्रारम्भ में वैदिक धर्म का अनुयायी था क्योंकि आचार्य चाणक्य कट्टर ब्राह्मण था जिसने धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष को मनुष्य के जीवन का अंग बतलाया है तथा यज्ञ आदि करने पर जोर दिया है। परन्तु जैन ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त सच्चा जैनी था, जिसने अपने जीवन का अन्तिम समय में एक आदर्श जैन संन्यासी की भांति तपस्या करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। परन्तु यदि उसके शासनकाल में देखा जाय तो उसने जनता को धर्म के नाम पर परेशान नहीं किया गया था। अपितु अपनी-अपनी इच्छानुसार धर्म पालन करने की पूरी छूट थी। अतः चन्द्रगुप्त मौर्य को धर्मपालक के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

5. वीर सेनानायक-  चन्द्रगुप्त मौर्य एक अतुलित शक्ति वाला योद्धा था जिसने नन्दों तथा यवन सम्राट सेल्यूकस के विरुद्ध कुशल सेनानायक का परिचय दिया। अत उसे कुशल सैनिक के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

6. दूरदर्शी शासक - चन्द्रगुप्त मौर्य को दूरदर्शी सम्राट के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, क्योकि उसने अपने विशाल शासन को केन्द्रित व्यवस्था के आधार पर प्रशासित किया तथा मन्त्रियों की नियुक्ति कर विभिन्न विभागों में समायोजन स्थापित किया। यह सब उसकी दूरदर्शिता को सूचित करता है। उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य निश्चय ही एक महान सम्राट था, जिसकी गणना भारत के महानतम शासकों में की जाती है। वी. ए. स्मिथ के अनुसार अठारह वर्ष का लम्बा समय लगाकर उसने मकदूनिया के सिपाहियों को भारत की सीमाओं से खदेड़ा, विशेषकर पंजाब और सिंध की भूमि से उन्हें बाहर धकेल दिया, सेल्यूकस की शक्ति को उसने क्षीण कर दिया और स्वयं उत्तरी भारत का निर्विवाद सम्राट बन गया। अरियाना प्रदेश के बहुत बड़े भाग पर भी उसका अधिकार था। ये सभी विशेषताए उसे महानतम और सफलतम शासकों के बीच स्थान देती हैं।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- ऐतिहासिक युग के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय दीजिए व भारत में उसके बाद विकसित होने वाली सभ्यता व संस्कृति को चित्रित कीजिए।
  3. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहाकार कल्हण व आर. सी. मजूमदार का परिचय दीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्रोत पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- जदुनाथ सरकार, वी. डी. सावरकर, के. पी. जायसवाल का परिचय दीजिए।
  6. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार मृदुला मुखर्जी के बारे में बताइए।
  7. प्रश्न- भारत संस्कृति (भाषाओं) के ज्ञान से अवगत कराइये।
  8. प्रश्न- नृत्य व रंगमंच की भारतीय संस्कृति से अवगत कराइये।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता से मगध राज्य तक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार विपिनचन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- मध्य पाषाण समाज और शिकारी संग्रहकर्ता पर टिप्पणी कीजिए।
  12. प्रश्न- ऊपरी पुरापाषाण क्रांति क्या थी?
  13. प्रश्न- प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- पाषाण युग की जीवनशैली किस प्रकार की थी?
  15. प्रश्न- के. पी. जायसवाल के विशिष्ट कार्यों से अवगत कराइये।
  16. प्रश्न- वी. डी. सावरकर के धार्मिक और राजनीतिक विचार से अवगत कराइये।
  17. प्रश्न- लोअर पैलियोलिथिक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं? 'हड़प्पा संस्कृति' के निर्माता कौन थे? बाह्य देशों के साथ उनके सम्बन्धों के विषय में आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन के विषय में विस्तारपूर्वक बताइये।
  21. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर-विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  30. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  31. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  35. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विनाश के क्या कारण थे?
  36. प्रश्न- लोथल के 'गोदी स्थल' पर लेख लिखो।
  37. प्रश्न- मातृ देवी की उपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- 'गेरुए रंग के मृदभाण्डों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- 'मोहन जोदडो' का महान स्नानागार' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  41. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  45. प्रश्न- वैदिक साहित्य के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- ब्रह्मचर्य आश्रम के कार्य व महत्व को समझाइये।
  47. प्रश्न- वानप्रस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  48. प्रश्न- सन्यास आश्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- मनुस्मृति में लिखित विवाह के प्रकार लिखिए।
  50. प्रश्न- वैदिक काल में दास प्रथा का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- पुरुषार्थ पर लघु लेख लिखिए।
  52. प्रश्न- 'संस्कार' पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- गृहस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  54. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- वैदिककाल में विवाह तथा सम्पत्ति अधिकारों की क्या स्थिति थी?
  57. प्रश्न- उत्तर वैदिककाल की राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए।
  58. प्रश्न- विदथ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- ऋग्वेद पर टिप्पणी कीजिए।
  60. प्रश्न- आर्यों के मूल स्थान पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- 'सभा' के विषय में आप क्या जानते हैं?
  62. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  63. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न. बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  67. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  71. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।
  74. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- सुदर्शन झील पर टिप्पणी लिखिए।
  78. प्रश्न- अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस प्रकार सिंहासन पर बैठा था?
  79. प्रश्न- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  81. प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  84. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  85. प्रश्न- सारनाथ स्तम्भ लेख पर टिप्पणी कीजिए।
  86. प्रश्न- बृहद्रथ किस राजवंश का शासक था और इसके विषय में आप क्या जानते हैं?
  87. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  91. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  94. प्रश्न- कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य को समझाइए।
  95. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  96. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  100. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  101. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  107. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  109. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आपसूक्ष्म में बताइए।
  110. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  111. प्रश्न- मिहिरभोज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न-
  114. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम के शासन-काल का विवरण दीजिए।
  115. प्रश्न- वत्सराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के स्थान का मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- मिहिरभोज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार सत्ता का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों का विघटन पर प्रकाश डालिये।
  120. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
  121. प्रश्न- महेन्द्रपाल प्रथम कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। उत्तर -
  122. प्रश्न- राजशेखर और उसकी कृतियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में प्रतिहारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  125. प्रश्न- कन्नौज के प्रतिहारों पर एक निबन्ध लिखिए।
  126. प्रश्न- प्रतिहार वंश का महानतम शासक कौन था?
  127. प्रश्न- गुर्जर एवं पतन का विश्लेषण कीजिये।
  128. प्रश्न- कीर्तिवर्मा द्वितीय एवं बादामी के चालुक्यों के अन्त पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- पूर्वी चालुक्य शासकों ने कला और संस्कृति में क्या योगदान दिया है?
  131. प्रश्न- चालुक्य कौन थे? इनकी उत्पत्ति के बारे में बताइए।
  132. प्रश्न- वेंगी के पूर्व चालुक्यों पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- चालुक्यकालीन धर्म एवं कला का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- चालुक्यों की विभिन्न शाखाओं का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- चालुक्य संघर्ष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  136. प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
  137. प्रश्न- चालुक्यों की उपलब्धियों के महत्व का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चालुक्यों की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- चालुक्य- पल्लव संघर्ष का विवरण दीजिए।
  140. प्रश्न- परमारों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- राजा भोज के शासन काल में चतुर्दिक उन्नति हुई।
  142. प्रश्न- परमार नरेश वाक्पति II मुंज के शासन काल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  143. प्रश्न- राजा भोज के शासन प्रबंध के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइए।
  144. प्रश्न- परमार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए तथा इस वंश का पतन क्यों हुआ?
  145. प्रश्न- परमार साहित्य और कला की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- परमार वंश का संस्थापक कौन था?
  147. प्रश्न- मुंज परमार की उपलब्धियों का आंकलन कीजिए।
  148. प्रश्न- 'धारा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  149. प्रश्न- सीयक द्वितीय 'हर्ष' के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- सिन्धुराज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  151. प्रश्न- परमारों के पतन के कारण बताइए।
  152. प्रश्न- राजा भोज एवं चालुक्य संघर्ष का वर्णन कीजिये।
  153. प्रश्न- राजा भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  154. प्रश्न- परमार इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  155. प्रश्न- भोज परमार की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  156. प्रश्न- परमारों की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
  157. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  158. प्रश्न- अर्णोराज चाहमान के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।
  160. प्रश्न- चाहमान कौन थे? विग्रहराज चतुर्थ के विजयों का वर्णन कीजिए।
  161. प्रश्न- चाहमान कौन थे?
  162. प्रश्न- विग्रहराज द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  163. प्रश्न- अजयराज चाहमान की उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  166. प्रश्न- पृथ्वीराज और जयचन्द्र की शत्रुता पर प्रकाश डालिये।
  167. प्रश्न- ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पृथ्वीराज रासो के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  168. प्रश्न- चाहमान वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  169. प्रश्न- चाहमानों के विदेशी मूल का सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  170. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के चन्देलों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  171. प्रश्न- गोविन्द चन्द्र गहड़वाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  172. प्रश्न- गहड़वालों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  173. प्रश्न- जयचन्द्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- अर्णोराज के राज्यकाल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  175. प्रश्न- चाहमानों (चौहानों) के राजनीतिक इतिहास का वर्णन कीजिए।
  176. प्रश्न- ललित विग्रहराज नाटक पर नोट लिखिए।
  177. प्रश्न- चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के तराइन युद्धों का वर्णन कीजिए।
  178. प्रश्न- चौहान वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  179. प्रश्न- सामंतवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  180. प्रश्न- सामंतवाद के पतन के कारण बताइए।
  181. प्रश्न- प्राचीन भारत में सामंतवाद की क्या स्थिति थी?
  182. प्रश्न- मौर्य प्रशासन और सामंतवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  183. प्रश्न-
  184. प्रश्न- वेदों की उत्पत्ति के विषय में बताइए। वेदों ने हमारे जीवन को किस प्रकार के ज्ञान दिये?
  185. प्रश्न- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
  186. प्रश्न- हिन्दू वर्ग की जाति-व्यवस्था व त्योहारों के विषय में बताइए।
  187. प्रश्न- 'लिंगायत'' के बारे में बताइए।
  188. प्रश्न- हिन्दू धर्म के सुधारकों के विषय में बताइए।
  189. प्रश्न- हिन्दू धर्म में आत्मा से सम्बन्धित विचारों से अवगत कराइये।
  190. प्रश्न- हिन्दुओं के मूल विश्वासों से अवगत कराइए।
  191. प्रश्न- उपवास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  192. प्रश्न- हिन्दू धर्म में लोगों के गाय के प्रति कर्तव्य से अवगत कराइये।
  193. प्रश्न- हिन्दू धर्म में
  194. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण का वर्णन कीजिए।
  195. प्रश्न- मुहम्मद गोरी की भारत विजय के कारणों की सुस्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  196. प्रश्न- राजपूतों के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
  197. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  198. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  199. प्रश्न- भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण के क्या कारण थे?
  200. प्रश्नृ- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी?
  201. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
  202. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी लिखें।
  203. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारतीय शासकों के तुर्कों से पराजय के क्या कारण थे?
  204. प्रश्न- भारत में तुर्की राज्य स्थापना के क्या परिणाम हुए?
  205. प्रश्न- मुहम्मद गोरी का चरित्र-मूल्यांकन कीजिए।
  206. प्रश्न- अरबों की असफलता के क्या कारण थे?
  207. प्रश्न- अरब आक्रमण का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
  208. प्रश्न- तराइन के प्रथम युद्ध पर प्रकाश डालिए।
  209. प्रश्न- भारत पर तुर्कों के आक्रमण के क्या कारण थे?
  210. प्रश्न- महमूद गजनवी का आनन्दपाल पर आक्रमण का वर्णन कीजिये।
  211. प्रश्न- महमूद गजनवी का कन्नौज पर आक्रमण पर प्रकाश डालिये।
  212. प्रश्न- महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ का विध्वंस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। [
  213. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमण के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  214. प्रश्न- भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामों पर टिप्पणी कीजिए।
  215. प्रश्न- मोहम्मद गोरी की विजयों के बारे में लिखिए।
  216. प्रश्न- भारत पर तुर्की आक्रमण के प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book